होती आंखें यह भारी
ना सोने को राजी
अंधेरों से प्यार हुआ
ना जाने यह कैसी बीमारी
आए दिन भर झमाई
पर रातों में गायब
सुकून ही नहीं है
यह मेरी शिकायत
उस परवरदिगार ने बेचैनियों से
जब कुछ ना बना तो मुझे बनाया
और मांगा जब मैंने एक तोहफा नायाब
उस शातिर ने मुझे एक लेखक बनाया
अब दिन के उजाले में हरजाई मै
रात को कलम से पन्ने सजाऊ
तारों को देखूं उन बादलों को देखूं
और चांद को देखकर भी मैं मस्काऊ
मेरी कला ताज महल आओ काटो मेरे हाथ
मैं थोड़ा हूं नालायक आजकल करता ना बात
मैं शायर हूं तन्हा क्योंकि दोस्ती बर्बाद
पढ़ा राहु बस अकेला कमरे में सुनसान
मैं 16 वर्षीय लेखक
मेरे शब्द लगे कड़वे
दवाई हो जैसे
मैं अंदर से साफ
तुम ठेस भी पहुचाओ
तो माफी ना मांगो
ज़हर हो जैसे
खुद में पाल रख्खा सांप
पर दिक्कत नहीं चाहे करो अनदेखा
मैं रात दिन एक कर बस लिखता रहूंगा
मैं जल सा नहीं खून सा बहुंगा
मै एक लेखक हूं यार
मशहूर भी बनूंगा ।
Written By: Pratyush Asthana
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