लेखक - Pratyush Asthana
होती आंखें यह भारी
ना सोने को राजी
अंधेरों से प्यार हुआ
ना जाने यह कैसी बीमारी
आए दिन भर झमाई
पर रातों में गायब
सुकून ही नहीं है
यह मेरी शिकायत
उस परवरदिगार ने बेचैनियों से
जब कुछ ना बना तो मुझे बनाया
और मांगा जब मैंने एक तोहफा नायाब
उस शातिर ने मुझे एक लेखक बनाया
अब दिन के उजाले में हरजाई मै
रात को कलम से पन्ने सजाऊ
तारों को देखूं उन बादलों को देखूं
और चांद को देखकर भी मैं मस्काऊ
मेरी कला ताज महल आओ काटो मेरे हाथ
मैं थोड़ा हूं नालायक आजकल करता ना बात
मैं शायर हूं तन्हा क्योंकि दोस्ती बर्बाद
पढ़ा राहु बस अकेला कमरे में सुनसान
मैं 16 वर्षीय लेखक
मेरे शब्द लगे कड़वे
दवाई हो जैसे
मैं अंदर से साफ
तुम ठेस भी पहुचाओ
तो माफी ना मांगो
ज़हर हो जैसे
खुद में पाल रख्खा सांप
पर दिक्कत नहीं चाहे करो अनदेखा
मैं रात दिन एक कर बस लिखता रहूंगा
मैं जल सा नहीं खून सा बहुंगा
मै एक लेखक हूं यार
मशहूर भी बनूंगा ।
Written By: Pratyush Asthana